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जिन्न का समर्पण कवि-सम्मेलन से घर लौटते समय हमारा पाँव अचानक एक बोतल से टकराया, मैंने घबराकर बोतल को उठाया, और सकपकाकर जैसे ही ढक्कन खोला, विस्फोट के साथ छूट गया बम का गोला। चारों ओर फैल गया धुआँ ही धुआँ, धुएँ के बादलों के बीच एक बहुत बड़ा जिन्न प्रकट हुआ। बोला आका, आपने मुझे आजाद किया है मैं जिन्दगी भर आपकी जी-हुजूरी करूँगा, जो भी माँगना चाहते हो माँग लो मैं आपकी हरेक इच्छा पूरी करूँगा मैंने कहा जिन्न महाराज, |
यदि करना ही है तो कर दो इतना-सा काज, भारत की भूमि से भ्रष्टाचार भगा दो, जिन्न बोला मैं वापिस बोतल में घुस रहा हूँ तुम ऊपर से ढक्कन लगा दो। |
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