Book Kavi Sammelan | Contact to |
Email : kavipraveenshukla@rediffmail.com hasyakavipraveenshukla@gmail.com |
Call us : 91- 9968804874, 91- 9312600362 |
मन पर घिरे साए जब तुम्हारी याद के मन पर घिरे साए ज़िन्दगी में गुलमोहर के फूल मुस्काए प्राण की वंशी स्वयं बजने लगी मन शिखर की सीढियाँ चढने लगा जैसे अनपढ पाठशाला में पहुँच प्रीति का खुद व्याकरण पढने लगा जिन्दगी ने जिन्दगी के अर्थ समझाए जब तुम्हारी याद के मन पर घिरे साए चन्दनी खुशबू के झोंकों में नहा फिर हरा मन का मरूस्थल हो गया जब नदी आकर मिली तो जलधि का दूर खारापन उसी पल हो गया प्यासी धरती पर घुमड कर मेघ घिर आए जब तुम्हारी याद के मन पर घिरे साए भावना ने छू लिया दिल का गगन रेशमी सपने नयन में बस गए जब तुम्हें देखा तो मुझको यूँ लगा जो भी थे अपने, नयन में बस गए कल्पना के पाँखियों ने पँख फैलाए जब तुम्हारी याद के मन पर घिरे साए |
तुम्हारी याद आए बिन काटे से कटता नहीं है दिन अब तुम्हारी याद आए बिन साथ में शुभ आहटें लेकर समय मेरे द्वारे पर कभी आया नहीं चाँदनी आग़ोश में लेता हुआ चाँद भी तेरे बिना भाया नहीं आलपिन से चुभ रहे पल-छिन अब तुम्हारी याद आए बिन मन के आँगन में मना त्यौहार भी बिन तुम्हारे सूना-सूना हो गया जितना ज्यादा भूलना चाहा तुम्हें उतना ज्यादा दर्द दूना हो गया आँख से आँसू झरे अनगिन अब तुम्हारी याद आए बिन नयन तकते हैं तुम्हारी राह को हर तरफ मिलती तुम्हारी आहटें तुम बिना सपने सलौने खो गये अब सिमटती जा रहीं सब चाहतें कट रहे दिन उँगलियों पर गिन अब तुम्हारी याद आए बिन |
|||